Introduction and Study of Globe – ग्लोब का विस्तृत अध्ययन

Introduction and Study of Globe – ग्लोब का विस्तृत अध्ययन

(Study of Globe ) अपने पर्यावरण को समझने तथा अपने योगदान से इसे उत्तम बनाने के लिए भौगोलिक ज्ञान का होना आवश्यक है। हमारी पृथ्वी गोल है और छात्र के मन में इस बात को लेकर काफी भ्रान्तियाँ हैं। काफी हद तक पृथ्वी के प्रारूप ग्लोब के माध्यम से हम उन्हें दूर कर सकते हैं। छात्र के दिमाग से भी पृथ्वी चपटी है, गोल नहीं है, जैसी भ्रान्तियाँ भी दूर हो जाती हैं। अत: ग्लोब का माध्यम न केवल बच्चों के लिए परिवेश अध्ययन के शिक्षण को सरल व सोद्देश्य बनाएगा बल्कि बंधुत्व की भावना भी बच्चों में सरलता से संजोएगा।

उद्देश्य:

1. ग्लोब के महत्त्व के बारे में ज्ञान प्राप्त करना।
2. ग्लोब और मानचित्र के अन्तर को जानना।
3. पृथ्वी से जुड़ी भ्रान्तियों के बारे में जानना।
4. पृथ्वी की वस्तु स्थिति के बारे में जानना ।
5. अक्षांश और देशान्तर रेखाओं के जाल को समझना।

ग्लोब दर्शाते हुए:

(Study of Globe ) ग्लोब पृथ्वी का सर्वोत्तम और शुद्ध प्रतिरूप (मॉडल) है। इसे हम पृथ्वी की आकृति दिखाने के लिए प्रयोग करते हैं। पृथ्वी प्रायः गोल है। परन्तु देखने में इसका तल सपाट दिखाई देता है। इसका आकार बहुत ही अद्भुत एवं विस्तार बड़ा ही विशाल है। धरातल पर कहीं, पर्वत, पठार, मैदान, घाटियाँ आदि हैं, तो कहीं गहरे और विस्तृत महासागर झील आदि।

पृथ्वी इतनी विशाल है कि हम इसके एक छोटे से भाग को ही एक बार में देख सकते हैं। क्योंकि हमारी दृश्य शक्ति कुछ अंश तक ही सीमित है, जिससे भू-जल सपाट दिखाई पड़ता है।

वैलेस ने पृथ्वी के उभार के सन्दर्भ में बताया है कि
1 मील में पृथ्वी का उभार = 8 “
2 मील में पृथ्वी का उभार 8″ x 22 अर्थात 32″ = 2 फुट 8″
3 मील में पृथ्वी का उभार = 8″ x 32 अर्थात 72″ = 6 फुट

अर्थात 6 फुट के कद का व्यक्ति पृथ्वी की सतह को केवल 3 मील तक ही देख सकता है। यह दूरी पृथ्वी की परिधि के हजार भाग से भी कम है। अतः हम इसकी गोलाई को अनुभव नहीं कर सकते और पृथ्वी गोलाकार होते हुए भी हमें चपटी प्रतीत होती है।

पृथ्वी फुटबाल की तरह गोल नहीं है, अपितु यह ध्रुवों पर अन्दर को धँसी हुई है और भूमध्य रेखा पर कुछ बाहर को उभरी हुई है। यदि फुटबाल की तरह पृथ्वी को गोल मान लिया जाए तो हमारे मन में अनेक प्रकार के प्रश्न उठते हैं।

1. फुटबाल किस-किस दिशा में घूम सकती है?
2. इसका शीर्ष कौन सा है और तल कहाँ है?
3. इसका कौन सा भाग सीधा है और कौन सा उलटा?
4. फुटबाल किस दिशा में स्थिर रह सकती है?

अब यह स्पष्ट है कि पृथ्वी लगभग गोल है और इसके धरातल पर चारों ओर अनेक मनुष्य और जीव जन्तु रहते हैं।

1. पृथ्वी के गोल होने से मनुष्य और जीव-जन्तु नीचे क्यों नहीं गिरते ?
2. क्या गोल धरातल पर मनुष्य सरलतापवूक घूम फिर सकता है?
3. क्या दक्षिणी गोलार्द्ध में रहने वाले लोगों के पैर ऊपर और सिर नीचे को होता है?

ग्लोब को ध्यान से देखो और बताओ ग्लोब फुटबाल से किस प्रकार भिन्न है ? ग्लोब किस के सहारे टिका हुआ है?

विचारणीय बिन्दु :

  • 1 अक्ष
  • 2 अक्षाश
  • 3 अक्षांश रेखा
  • 4 देशान्तर
  • 5 देशान्तर रेखा
  • 6 भूमध्य रेखा
  • 7 कर्क
    रेखा
  • 8 मकर रेखा
  • 9 आर्कटिक वृत्त
  • 10 अण्टार्कटिक वृत्त
  • 11 उत्तरी ध्रुव
  • 12 दक्षिणी ध्रुव
  • 13 गोलार्द्ध
  • 14 उत्तरी गोलार्द्ध
  • 15 दक्षिणी गोलार्द्ध
  • 16 ग्रीनविच रेखा

ग्लोब को घुमाते हुए:

ग्लोब स्टैण्ड पर टिका हुआ है और पूर्व से पश्चिम और पश्चिम से पूर्व को घूम रहा है। ग्लोब पर दो निश्चित बिन्दु हैं, इन्हें आधारभूत सन्दर्भ बिन्दु भी कहते हैं। उत्तरी (ऊपर के) बिन्दु को उत्तर ध्रुव और दक्षिणी (नीचे के) बिन्दु को दक्षिण ध्रुव कहते हैं। ग्लोब के उत्तरी और दक्षिणी बिन्दु एक कीली से जुड़े हुए हैं और उसी पर ग्लोब घूमता है।

हमारी पृथ्वी भी एक कल्पित कीली पर घूमती है, जिसके ऊपरी भाग को उत्तर ध्रुव और नीचे के भाग को दक्षिण ध्रुव कहते हैं। इस कल्पित कीली को पृथ्वी का ‘अक्ष’ कहते हैं। पृथ्वी का यह अक्ष सदैव एक ओर झुका रहता है। पृथ्वी का अक्ष उसके कक्षा तल पर बने लम्ब से 23%° झुका हुआ है।

भूमध्य रेखा ग्लोब (पृथ्वी) को दो समान भागों में बाँटती है। भूमध्य रेखा से उत्तर ध्रुव तक के भाग को उत्तरी गोलार्द्ध और इससे दक्षिण ध्रुव तक के भाग को दक्षिणी गोलार्द्ध कहते हैं।

अर्थात् सही स्थिति का ज्ञान करने के लिए ही ग्लोब पर कुछ खड़ी व पड़ी रेखाओं का जाल सा बना हुआ है, जिन्हें अक्षांश एवं देशान्तर रेखाएँ कहा जाता है। किसी स्थान की पृथ्वी के केन्द्र के साथ भूमध्य रेखीय तल से उत्तर व दक्षिण की ओर कोणात्मक दूरी को उस स्थान का अक्षांश कहते हैं। और समान अंक्षाशों को मिलाने वाले वृत्तों/रेखाओं को अक्षांश वृत्त / रेखाएँ कहते हैं। दोनों गोलार्द्ध में इनकी संख्या समान है।

इस प्रकार भूमध्य रेखा के अतिरिक्त इनकी संख्या 180 (90 +90) है। यह संख्या उत्तरी ध्रुव व दक्षिणी ध्रुव की ओर 90° ही क्यों है?

सिद्ध है कि यदि हम भूमध्य रेखा के किसी भी स्थान से उत्तर या दक्षिणी ध्रुव की ओर चलें तो हम पृथ्वी के 1/4 भाग को पार करते हैं। अतः 360/4 = 90° हुए। अतः इनकी संख्या 90° उत्तरी ध्रुव की ओर तथा 90° दक्षिणी ध्रुव की ओर है। आओ ग्लोब पर करके देखें। भूमध्य रेखा वाला वृत्त सबसे बड़ा है और इसके उत्तर तथा दक्षिण को इनकी लम्बाई क्रमशः कम होती जाती है। यहाँ तक कि 90° उत्तर तथा 90° दक्षिण बिन्दु मात्र ही रह जाते हैं। ये सभी रेखाएँ सीधी दिखाई पड़ती हैं परन्तु वास्तव में यह सीधी रेखाएँ नहीं हैं अपितु पूर्ण वृत्त हैं।

भूमध्य रेखा से उत्तर की सभी अक्षांश रेखाओं के साथ उत्तर (उ०) तथा दक्षिण की सभी अक्षांश रेखाओं के साथ दक्षिण (द०) लिखा जाता है। भूमध्य रेखा (09) के साथ कुछ भी ( उ० या द०)। नहीं लिखा जाता। दो अक्षांशों के बीच की दूरी 111.3 किलोमीटर है।

कर्क रेखा 23»° उ०, मकर रेखा 23°40, आर्कटिक रेखा 66%° उ0, अंटार्कटिक रेखा 66%° द० तथा उत्तर ध्रुव एवं दक्षिण ध्रुव कुछ प्रमुख अक्षांश रेखाएँ है।

अक्षांश:

किसी स्थान की भूमध्य रेखीय तल से उत्तर व दक्षिण की ओर कोणात्मक दूरी को उस स्थान का अंक्षाश कहते हैं।

अक्षांश रेखाएँ:

वे कल्पित रेखाएँ हैं, जो उन स्थानों में से गुजरती हैं, जिनकी भूमध्यरेखीय तल से एक ही दिशा में कोणात्मक दूरी एक समान हो, उन्हें अक्षांश रेखाएँ कहते है। ये सभी रेखाएँ भूमध्य रेखा के समान्तर होती हैं। ये रेखाएँ भी पृथ्वी को दो भागों में विभक्त करती हैं परन्तु ये दो भाग आपस में बराबर नहीं होते।

प्रमुख अक्षांश रेखाएँ

कर्क रेखा: 

21 जून को पृथ्वी का उत्तरी ध्रुव सूर्य की ओर 23½° के कोण पर झुका होता है। इस दिन सूर्य की किरणें 231° उत्तरी अक्षांश रेखा पर लम्बवत पड़ती हैं। इस रेखा को कर्क रेखा कहते हैं।

मकर रेखा:

22 दिसम्बर को पृथ्वी का दक्षिणी ध्रुव सूर्य की ओर 23½° के कोण पर झुका होता है। इस दिन सूर्य की किरणें 231½° दक्षिणी अक्षांश रेखा पर लम्बवत पड़ती है। इसे मकर रेखा कहते हैं।

उत्तरी ध्रुव वृत्त:

21 जून को जब उत्तरी ध्रुव सूर्य की ओर झुका होता है तो उत्तरी गोलार्द्ध में कुछ ऐसा भू-भाग होता है, जहाँ पर सूर्य की किरणें उत्तरी ध्रुव को पार करके पड़ती हैं, यह 66 » ° उ० अक्षांश रेखा है। इस रेखा को ही उत्तरी ध्रुव वृत्त कहा जाता है।

दक्षिणी ध्रुव वृत्त:

22 दिसम्बर को जब दक्षिणी ध्रुव सूर्य की ओर झुका हुआ होता है तो दक्षिणी गोलार्द्ध में कुछ ऐसा भाग होता है। जहाँ पर सूर्य की किरणें दक्षिणी ध्रुव को पार करके पड़ती हैं। यह 66½2° दक्षिणी अक्षांश रेखा है। इस रेखा को दक्षिणी ध्रुव वृत्त कहते हैं।

देशान्तर रेखाएँ:

वे कल्पित रेखाएँ, जो उत्तरी तथा दक्षिणी ध्रुवों को मिलाती हुई इस प्रकार खींची जाएँ कि वे भूमध्य रेखा को समकोण पर काटती हैं। उन्हें देशान्तर रेखाएँ कहते हैं। सभी देशान्तर रेखाएँ एक समान होती हैं और अर्धवृत्ताकार होती हैं। एक देशान्तर रेखा पर पाए जाने वाले सभी स्थानों पर सूर्य ऊँचे से ऊँचा एक ही समय होता है। इसलिए इन रेखाओं को मध्याह रेखा भी कहते हैं। ये रेखाएँ अक्षांश रेखाओं की भाँति आपस में समानान्तर नहीं होती। इनके बीच की दूरी सबसे अधिक दूरी भूमध्य रेखा पर होती है।

ध्रुवों की ओर जाने से इनके बीच का अन्तर कम होता जाता है। यहाँ तक कि ध्रुवों पर सब देशान्तर रेखाएँ आपस में एक बिन्दु पर मिल जाती हैं। पृथ्वी एक गोला है और एक गोले में 360° होती हैं। अतः पृथ्वी तल पर एक अंश के अन्तर पर इनकी संख्या भी 360 ही होती है। इंग्लैण्ड में ग्रीनविच के स्थान से होकर गुजरने वाली रेखा को आरम्भिक मध्याह रेखा मान लिया गया है। इसलिए इस रेखा को प्रधान मध्याह्न रेखा (Prime Meridian ) कह हैं। प्रधान मध्याह रेखा 0° मध्याह्न रेखा है। प्रधान मध्याह रेखा से किसी स्थान की कोणात्मक दूरी को उस स्थान का देशान्तर (Longitude) कहते हैं।

इसी प्रकार दोनों ध्रुवों को मिलाती हुई उत्तर से दक्षिण को खिंची हुई रेखाएँ देशान्तर रेखाएँ कहलाती हैं। ये सभी रेखाएँ कल्पित रेखाएँ हैं और पृथ्वी पर कहीं भी नहीं खिंची हैं। ये सभी रेखाएँ एक समान और बराबर लम्बाई की है। किसी भी रेखा को आरम्भिक (0 अंश) देशान्तर रेखा माना जा सकता था परन्तु सर्वसम्मति से लन्दन के पास ग्रीनविच वेधशाला में से गुजरने वाली देशान्तर रेखा को ही 0° देशान्तर रेखा माना। इसीलिए 0° देशान्तर रेखा को ग्रीनविच रेखा भी कहते हैं। इस रेखा से इन सभी देशान्तर रेखाओं की गिनती आरम्भ होती है। इसे (0) प्रधान देशान्तर रेखा भी कहते हैं। एक देशान्तर पर उत्तर से दक्षिण तक एक ही समय मध्याह्न का समय होता है। इसलिए इन्हें मध्याह्न रेखाएँ भी कहते हैं। इन रेखाओं से समय का ज्ञान भी होता है।

एक वृत्त में 360° होते हैं। अतः इनकी संख्या 360 है। 0° से पूर्व में 180° तक और 0° से पश्चिम में 180° तक देशान्तर रेखाएँ होती हैं। इस प्रकार 0° और 180° देशान्तर की एक ही रेखा है। पूर्वी देशान्तर रेखाओं के साथ (पू०) और पश्चिम देशान्तर रेखाओं के साथ (प0) लिखा जाता है। 0° देशान्तर के साथ पूर्व या पश्चिम कुछ नहीं लिखा जाता।

180° पूर्व का देशान्तर और 180° पश्चिम का देशान्तर एक ही है और यह देशान्तर ग्रीनविच के ठीक दूसरी ओर है। जिस समय ग्रीनविच में मध्याह्न होगी, उसके पूर्व में स्थित स्थानों पर मध्याह्नोत्तर (पी०एम०) समय होंगे और पश्चिम में स्थित स्थानों पर मध्याह्न पूर्व (ए०एम०) समय होंगे। अक्षांश एवं देशान्तर रेखाओं के इस जाल को ग्रिड कहते हैं। इसकी सहायता से ग्लोब अथवा मानचित्र पर किसी स्थान की स्थिति सरलता से ज्ञात की जा सकती है। ग्लोब पर दो संलग्न देशान्तर रेखाओं के बीच स्थित भाग को गोर कहते हैं। जबकि किन्हीं दो संलग्न अक्षांश वृत्तों के बीच का क्षेत्र कटिबन्ध कहलाता है। भूमध्य रेखा पर 1° देशान्तर की दूरी पृथ्वी की परिधि में 360° का भाग देकर ज्ञात किया जा सकता है।

अर्ध रात्रि का सूर्य- 661° उत्तरी एवं दक्षिणी ध्रुव वृत्त से परे के परदेशों में दिन की अवधि 24 घण्टे से अधिक की होती है। सूर्य निरन्तर क्षितिज पर ही रहता है और उस समय भी दिखाई देता है, जब उस देशान्तर पर आने वाले देशों (भागों) में अर्धरात्रि के 12 बजे होते हैं। इस अर्धरात्रि के समय में भी आकाश में सूर्य चमकता दिखाई देता है। इसे अर्धरात्रि का सूर्य कहते हैं।

स्थानीय समय:

किसी स्थान पर सूर्य के अनुसार समय को, वहाँ का स्थानीय समय कहते हैं। भिन्न-भिन्न मध्याह रेखाओं पर पाए जाने वाले स्थानों का स्थानीय समय भिन्न होता है परन्तु एक ही मध्याह रेखा पर पाए जाने वाले स्थानों का स्थानीय समय एक ही होता है।

प्रामाणिक समय:

भिन्न-भिन्न स्थानों का स्थानीय समय भिन्न-भिन्न होने के कारण इसे दैनिक जीवन में प्रयोग किया जाए तो अनेक असुविधाएँ उत्पन्न हो जाएँगी। अतः इस बाधा को दूर करने के लिए। प्रत्येक देश की सरकार एक निश्चित देशान्तर के स्थानीय समय को सम्पूर्ण देश में प्रयोग करती हैं, इस समय को उस देश का प्रामाणिक समय कहते है।

समय कटिबन्ध:

कई बड़े-बड़े देशों में, जो पूर्व पश्चिम में बहुत फैले हुए हैं, एक प्रामाणिक समय की बजाय कई प्रामाणिक समय प्रयोग में लाए जाते हैं। देश के अलग-अलग प्रामाणिक समयों वाले भागों को समय कटिबन्ध (Time Zone) कहते हैं।

इस प्रकार कैनेडा को वहाँ सरकार ने पाँच समय कटिबन्धों में बाँटा है। इसी प्रकार संयुक्त राज्य अमेरिका में भी चार समय कटिबन्ध हैं। स्थानीय समय की बाधा को दूर करने के लिए पूरे संसार को भी 24 समय कटिबन्धों में विभाजित किया गया है। एक समय कटिबन्ध में ( 380/24) 15 ° देशान्तर पड़ते हैं। 180° देशान्तर रेखा को नवीन दिवस आरम्भ होने का बिन्दु माना गया है और धी रात के बारह बजे नई तिथि आरम्भ होती है। इसलिए 180° देशान्तर को अन्तरराष्ट्रीय तिथि रेखा कहते हैं।

180° देशान्तर रेखा की भाँति सीधी न होकर कई स्थानों पर टेढ़ी-मेढ़ी हो गई है। जब हम अमेरिका की ओर जाते हैं तो एक दिन जोड़ दिया जाता है। और जब हम जापान की ओर जाते हैं। तो एक दिन घटा दिया जाता है। यदि किसी दिन ग्रीनविच (0° देशान्तर रेखा) पर रात्रि के 12 बजे हों और हम पूर्व की ओर से 180° पूर्व देशान्तर रेखा पर पहुँचे तो वहाँ अगले दिन के दोपहर के 12 बजे होंगे। यदि हम ग्रीनविच से पश्चिम की ओर चलें तो 180° प0 देशान्तर रेखा पर पहुँचने पर वहाँ उसी दिन के दोपहर 12 बजे होंगे। इस प्रकार 180° पूर्वी एवं पश्चिमी देशान्तर रेखा पर, जो कि एक ही है, दो तिथियाँ आ जाती हैं। इसके पूर्व में सोमवार है तो पश्चिम में रविवार का दिन होगा।

1 thought on “Introduction and Study of Globe – ग्लोब का विस्तृत अध्ययन”

  1. bahut acchi post hai or bahut hi acche tarike se samjhaya gaya hai .thanx for provide important information.
    ग्लोब के बारे में इस पोस्ट में काफी अच्छी जानकारी पढ़ने मिली है। इस प्रकार से पोस्ट लिखने के लिए आपका धन्यवाद यह लेख मेरे लिए बहुत ही उपयोगी है

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